hindisamay head


अ+ अ-

कविता

मदमाता पपिहरा

श्रीपाल सिंह क्षेम


मदमाता पपिहरा बोलइ रे, मदमाता पपिहरा।

बागे-बगीचा बहइ पुरवाई,
बँसवा के बाहीं उठइ अँगराईं।
निमियाँ के बेनिया डोलइ रे,
मदमाता पपिहरा बोलइ रे, मदमाता पपिहरा...

पूरब के राहे बदरिया आवइ,
साँझ-सकारे दुअरिया गावइ।
गाँठि हिया के खोलइ रे,
मदमाता पपिहरा बोलइ रे, मदमाता पपिहरा...

बदरा के छाहीं उड़इ लागे कजरा,
बेला के बाहीं फलइ लागे गजरा।
तिरुन-तिरुन तन तोलइ रे
मदमाता पपिहरा बोलइ रे, मदमाता पपिहरा...

बुनियाँ के घूँघुर बजइ जागे अँगना,
बीजुरि कलइयाँ चमकि रहे कँगना।
अंगुर-अंगुर मोती डोलइ रे
मदमाता पपिहरा बोलइ रे, मदमाता पपिहरा...

रतिया के भावइ सघन अन्हिअरिया,
दिनवाँ अकासे उड़इ हरियरिया।
कोइलरि के 'कुहू' अनमोलहु रे
मदमाता पपिहरा बोलइ रे, मदमाता पपिहरा...

सपनन के पाँती बहइ मोरे पँखिया,
अँसुअन के ओरी चुवइ मोरे अँखियाँ।
बिरही परनवाँ हौलइ रे
मदमाता पपिहरा बोलइ रे, मदमाता पपिहरा...


End Text   End Text    End Text